
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं
ज़िंदगी को भी सिला कहते हैं कहने वाले
जीने वाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं
फ़ासले उम्र के कुछ और बढ़ा देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं
चंद मासूम से पत्तों का लहू है ‘फ़ाकिर’
जिस को महबूब की हाथों की हिना कहते हैं