
सरे राह…..कहीं कोई मिल जाये ….हमसफ़र पर तन्हा तन्हा चाँद रहा तन्हा तन्हा जीवन का आसमाँ ….लफ्ज़ों ने कहा….
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चांद तन्हा है आसमाँ तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा…..
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा……इश्क ने मारा ऐसा मारा कमाल से किया प्यार रूह तक भीग गई.टूट कर प्यार किया बेइंतहाँ माँगा क्या....चाहा क्या प्यार करने वाला साथी साथ रहे साथ न मिला न साथी मिला....मीना ने लिखा
दिल सा जब कोई साथी पाया
बेचैनी भी वह साथ ही लाया
कमाल …कमाल के शौहर हुए …मालिकाना हक की तरह बीवी पर हक जमाने वाले ….मीना ने लिखा –
जैसे जागी हुई आँखों में चुभे कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
ज़िंदगी सफलता के शिखर पर थी …पिल्मों ने पुरस्कारों से नवाज़ा ….शोहरत ,दौलत और नाम की बेशुमारियाँ ……दिल की तन्हाईयाँ पर भरी न जा सकीं …
ये रात ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने का की आवाज़
ये सन्नाटा……कलम ने रूह के दर्द को लफ्ज़ों का सहारा दिया ….मीना बहती रही….मय
की तरह….निकाह…..अरमानों के पँख……मन उड़ऩे लगा ….
हया से टूट के आह कांपती बरसात आई
आज इकरार ए जुर्म कर ही लें वो रात आई
धनुक के रंग लिए बिजलियाँ सी आँखों में
कैसी मासूम उमंगों की यह बारात आई…..
निकाह के बाद खूबसूरत लम्हों में लिख़ा….
महकते रंग भरे हो गए दिन रात मेरे
मेरे मोहसिन ,तेरी खुश्बू,तेरी चाहत के तुफैल
नर्म दिल महज़बीं जबफिल्मों के लिए मीना बनी तो लफ्ज़ों ने कहा….
रूह का चेहरा किताबी होगा
जिस्म का वर्क उन्नाबी होगा
शरबती रंग से लिखो आँखे
और एहसास शराबी होगा……
मिला आसमाँ पर ….आसमाँ कितना ….ज़रा सा ….औरत कला की ऊँचाई पर …कलाकार का मन ….शायरा ..संवेदनशील ….नर्म दिल ….पर जन्म से तड़पते मन को नहीं मिला सुकूँ थोड़ा सा …दिल की विरानियाँ बयाँ हुईं पर कितनी कब कहाँ दफ्न हुईं ….किसे है पता…..तलाक तलाक तलाक …..
ख़ंज़र से लफ्ज़ ….
रूह ने कहा –
तलाक तो दे रहे हो नज़र –ए- कहर के साथ
जवानी भी मेरी लौटा दो मेहर के साथ दर्द से आशना होती मीना....
ज़िन्दगी के रंग सुख बदा ही नहीं था किस्मत में ….दुबारा निकाह……औरत कितनी बेबस …..कितनी मजबूर …उफ्फ
रूह ने तड़प कर कहा …तुम क्या करोगे सुनकर मुझसे मेरी कहानी
बेलुत्फ़ ज़िंदगी के किस्से हैं फीके फीके …..
लम्हा लम्हा बिख़रती इक रूह मौत की शहनाई सुनने को बेताब हो गई …..मीना ने मय के प्यालों से दोस्ती कर ली….जिस्म के कतरे कतरे ने आँसुओं से कहने की कोशिश की ….शराब ने ग़म लील लिया होता तो हर कोई पी लेता ….शराब ने मीना को पीना शुरु कर दिया था …रफ्ता रफ्ता जिस्म जाँ से जुदा होता हुआ …….
दर्द की अपनी रवायत रही ….लफ्जों में यूँ बयाँ हुए ……
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
बैठे हैं रस्ते में बयाबाँ-ए-दिल सजाकर
शायद इसी तरफ से इक दिन बहार गुज़रे
अच्छे लगते हैं दिल को तेरे गिले भी लेकिन
तू दिल ही हार गुज़रा ,हम जान हार गुज़रे
तू तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
मेरी तरह संभाले कोई तो दर्द जानूं
इक बार दिल से होकर परवरदिगार गुज़रे
काँधे पे अपने सर रख के अपना मज़ार गुज़रे ….
और गुज़र गई एक कलाकार….शायरा ….दर्द पीते पीते…….
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सड़कों की सहर होती है
एक मरकज़ की तलाश ,एक भटकती खुशबू
कभी मंज़िल कभी तम्हीदें सफर होती है..
¤ रीमा दीवान चड्ढा