प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगीमेरे हालात की आंधी में बिखर जाओगी रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँख़्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं…
Category: Javed Akhtar
हम तो बचपन में भी अकेले थे सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे थीं सजी हसरतें दुकानों पर ज़िंदगी के अजीब मेले थे ख़ुद-कुशी क्या दुखों का…
दूर तक चारों तरफ़ फैले थेमोहरेजल्लादनिहायत सफ़्फ़ाक (सफ़्फ़ाक = बेदर्द)सख़्त बेरहमबहुत ही चालाकअपने क़ब्ज़े में लिएपूरी बिसात (बिसात = शतरंज)उसके हिस्से में फ़क़त मात लिए (फ़क़त…
ज़िल्लत-ए-ज़ीस्त या शिकस्त-ए-ज़मीर ये सहूँ मैं कि वो सहूँ साहब हम तुम्हें याद करते रो लेते दो-घड़ी मिलता जो सुकूँ साहब शाम भी ढल रही है घर भी है दूर कितनी देर और मैं रुकूँ साहब अब झुकूँगा तो टूट…
किस किस की आँखों में देखे मैं ने ज़हर बुझे ख़ंजर ख़ुद से भी जो मैं ने छुपाए कैसे वो सदमात लिखूँ तख़्त की ख़्वाहिश लूट की लालच कमज़ोरों पर ज़ुल्म का शौक़ लेकिन उन का फ़रमाना है मैं इन…