प्रिय की पृथुल जाँघ पर लेटी करती थीं जो रंगरलियाँ,उनकी कब्रों पर खिलती हैं नन्हीं जूही की कलियाँ। पी न सका कोई जिनके नव अधरों की मधुमय प्याली,वे भौरों से रूठ झूमतीं बन कर चम्पा की डाली। तनिक चूमने से…
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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छूटा करतेवक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं टूटा करते जिसने पैरों के निशाँ भी नहीं छोड़े पीछेउस मुसाफ़िर का पता भी नहीं पूछा करते तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरनाहम कई सदियाँ तुझे…
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं ज़हर ख़ुद मैं ने पिया है कोई अफ़्सोस नहीं मैं ने मुजरिम को भी मुजरिम न कहा दुनिया में बस यही जुर्म किया है कोई अफ़्सोस नहीं मेरी क़िस्मत में लिखे थे…
खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रहीअच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आपजो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र कियाहम पर किसी ख़ुदा की…
मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को वहाँ पे ढूँड रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं मैं आइनों से…
सहरा सहरा चीख़ता फिरता हूँ मैं हो के दरिया किस क़दर प्यासा हूँ मैं जान कर गूँगा हूँ और बहरा हूँ मैं इस लिए इस शहर में ज़िंदा हूँ मैं इस को मंज़िल जानते हैं राहबर इत्तीफ़ाक़न जिस जगह ठहरा…
कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा शायद इसी मरने में जीने का मज़ा होगा हर सई-ए-तबस्सुम पर आँसू निकल आए हैं अंजाम-ए-तरब-कोशी क्या जानिए क्या होगा गुमराह-ए-मोहब्बत हूँ पूछो न मिरी मंज़िल हर नक़्श-ए-क़दम मेरा मंज़िल का पता…
फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था वो मुझ से इंतिहाई ख़ुश ख़फ़ा होने से पहले था किया करते थे बातें ज़िंदगी-भर साथ देने की मगर ये हौसला हम में जुदा होने से पहले था हक़ीक़त से…
हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है इसी लिए तो अभी तक ये जान बाक़ी है वो नफ़रतों की इमारत भी गिर गई देखो मोहब्बतों का ये कच्चा मकान बाक़ी है मिरा उसूल है ग़ज़लों में सच बयाँ करना मैं…
हम तो बचपन में भी अकेले थे सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे थीं सजी हसरतें दुकानों पर ज़िंदगी के अजीब मेले थे ख़ुद-कुशी क्या दुखों का…